बादलियो आंखड़ल्यां में
लय - रुं रुं से में सांवरियो बसियो
रचयिता - आचार्यश्री तुलसी
बादलियो आंखड़ल्यां में वरस्यो, आंखइल्यां में वरस्यो,
गण - बाड़ी खिल ज्यावेला, ओ संतां ।
मुरझ्योड़ा ओ मनड़ो हरस्यो, ओ मनड़ो हरस्यो,
अनुशासन मिल ज्यावेला, ओ संतां ॥
तपस्या री जोत ले' र देह न सुकाई है,
नदियां री ताती रेत शीतल बणाई है,
इन्दासण हिल ज्यावेला, ओ संतां ll
विनती रा बोल सुणो उभां हां म्हे सामने,
ओ कोई वनवास से आदेश मिल्यो राम नेे,
छमता के छिप ज्यावेेला, ओ संतां ll
थे हो बुद्धिमान थां में ज्ञान से उजास है,
थारै उपर देखो म्हारो पूरो विश्वास है,
कुण दूजो दिल आवेला, ओ संतां ll
थां स्यूं म्हाने आगे और घणी - घणी आस है,
देखो आं कंठां में आज कित्ती - कित्ती प्यास है,
कुण इमरत बरसावेला ओ संतां ll
छोड़ो आप अबे तपस्या ने म्हारे वास्ते,
लोगां से कल्याण हुवै लागो उण रासते,
जबरी जाग्रति आवेला, ओ संतां ll
गहरेे पाणी पेठ के विचारी सुरुवात नेे,
भावी भरी लाभ सिकारी सारी बात नेे,
गांठां से खुल ज्यावेला, ओ संतां ll
हुई धर्मकांति आग्यो चेतना में चानणो,
बड़ा - बड़ा ढ़िवालों ने पड्यो लोहो मानणो,
इचरज सबनेे आवेला, ओ संतां ll
पढ़ायो ओ पाठ पैलो रहो एक डोर में,
प्राण स्यूं भी उंचो प्रण, सोच्यो भोर - भोर में,
सुजस अमर बण ज्यावेला, ओ संता ll
थिरपाल फतै आज तेरापंथ संघ में,
हरस हुलास आज म्हारेे अंग - अंग में,
'तुलसी' मोद मनावेला, ओ संतां l
वसुगढ़ में रंग छावैला, ओ संतां l
मर्यादा मन भावेेला, ओ संतां ।
मोछव सदा स्वावैला, ओ सतां l
December 07,2022 / 1:35 PM
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