भोर-भोर उठ कर प्रभु
लय : बादळियो
रचयिता : साध्वी जतनकुमारीजी
भोर-भोर उठ कर प्रभु नै सुमरलै,
भव-जल तूं तर ज्यावैला ओ मनवा ।
प्रभु नाम च्यांनणिये स्यूं आंगणियै नै भरलै,
अंधियारो मिट ज्यावैला, ओ मनवा ।।
1. ऋषभ, अजित, संभव अभिनन्दन है,
सुमति, पद्म, सुपाईंव जग वंदन है ।
बंधन सब कट ज्यावैला, ओ मनवा ।।
2. चन्द्रप्रभु, सुविधि, शीतल, श्रेयांस है,
वासुपुज्य, विमल, अनन्त गुण-राश है ।
आनन्दमय दिन ज्यावैला, ओ मनवा ।।
3. धर्म, शान्ति, कुन्थु, अर, मल्ली भगवान है,
मुनिसुव्रत, नमि, नेमि, पारस, वर्धमान है ।
सुख सम्पति बढ़ ज्यावैला, ओ मनवा ।।
4. इग्यारह है गणधर, बीस विहरमाण है,
सोलह सतियां रो नाम, करै कल्याण है ।
पावन तूं बण ज्यावैला, ओ मनवा ।।
5. भीक्षु, भारीमाल, राय, जय, मघराज है,
माणिक, डालिम, कालू, तुलसी सिरताज है ।
महाप्रज्ञ मन भावैला, ओ मनवा ।
'जतन' काम बण ज्यावैला, ओ मनवा ।।
October 02,2022 / 12:25 PM
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