देवते ! बतलाओ शासन का आधार
लय - आपण भागां री
रचयिता आचार्यची महाप्रज्ञ
देवते ! बतलाओ शासन का आधार
भिक्षुवर ! कैसे तुम बन पाए अवतार,
रोम रोम में रम रहे हो, बनकर एकाकार ॥
अनुशासन ही बन रहा है, शासन का आधार ।
मर्यादा को सिर चढ़ाकर बन जाता अवतार
तेला भारीमाल का है, एक नया संसार ।
चौमासी दीपा सती की, एक नया उपहार ॥
आज नहीं है हेम मुनिवर, प्रभु के व्याख्याकार ।
जयाचार्य भी है नहीं, प्रभु भाष्यकार शृंगार ||
आर्यप्रवर तुलसी मुनीश्वर भक्त हृदय के हार ।
जिनकी मेथा ने दिया है, तुमको नव आकार ॥
मैंने समझा है तुम्हे यह तुलसी का उपकार ।
मेरे गुरु का मानता हूं, पल-पल मै आभार ॥
इन्द्रियवादी चौपाई में, तव दर्शन साकार |
नव पदार्थ की चौपाई में खुलात का द्वार ॥
अनुकंपा की चौपाई का धर्म और व्यवहार ।
विश्लेषण बतला रहा है, दया धर्म और व्यवहार ॥
कालू करुणा से जुड़ा है, मुनि पृथ्वी का तार ।
श्रद्धाभूमि से जुड़ा है, भैरू का परिवार |
श्रद्धाभूमि से जुड़ा है, ईसर का परिवार l
गंगा का गंगाशहर है, पावस पा गुलजार ॥
जन - जन में जागृत रहे नित, अणु - प्रेक्षा संस्कार |
'महाप्रन' गण में करो प्रभु भक्ति - शक्ति संचार ॥
December 09,2022 / 5:03 PM
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