घोर तपसी हो मुनि !
लय - ओर रंग दे रे बाल्या
रचयिता - आचार्यश्री तुलसी
घोर तपसी हो मुनि ! घोर तपसी,
थारो नाम उठ - उठ भोर जपसी, हो मुनि !
घोर तपसी हो सुख घोर तपसी !
थांरो जाप जप्यां करमां री कोड़ खपसी हो मुनि !
दो सौ बरसां री भारी ख्यात हे बणी,
थांरो नाम मोटा तपस्यां रे साथ फबसी, हो मुनि !
ओ अनशन आ सहज समता,
लाखां लोगां रे दिनां में थांरी छाप छपसी, हो मुनि ॥
काया पर कुल्हाड़ी व्हाणी काम करड़ो,
सोरी पाटा ऊपर बैठ करणी गपशप सी, हो मुनि !
तपस्या आतापना स्वाध्याय करणी,
थांरी सेवा - भावना रे लारे सारा दबसी, हो मुनि ! ॥
स्वामीजी से शासन तप - संयम री सुरसरी,
इण में न्हावसी जकां से सारो पाप धुपसी, हो मुनि !
आपण शासण री संतां चढ़ती कला,
इण में घणां ही तप्या है और धणां तपसी, हो मुनि !
शिखर चढ्या है और चढ़ता ही रहसी,
गण से शींप आभै, पैर जा पाताल रुपसी, हो मुनि !
इण स्यूं विमुख अवनीत जो होसी,
बां से भाग से भानुड़ी जा छिती में छुपसी, हो मुनि !
संजम - जीवन जीवों पंडित - मरण मरो,
थांरेे दोन्र्यू हाथ लाडू, खावो खुशी रे खुशी, हो मुनि !
लघी लम्बी यात्रा मंगल फागण बढ़ी,
'सुख' साधना सुखदाई गाई गणी 'तुलसी', से मुनि !
December 30,2022 / 11:15 PM
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