सीमंधर भगवान
जी मैं चरणां शीश नमाऊं, जी मैं दर्शण किण विध पाऊँ ।
जी म्हारी वीनतड़ी अवधारो, जी मोहे तारो पार उतारो l
जी संसार लगेै छै खारो, जी वैराग्य लगे छे प्यारो l
जी म्हारा आवागमन निवारो, जी सीमंधर भगवान ॥
समंधर प्रभुजी नेै प्रणमुं, चरणां शीष नमाय l
आप तणां गुणमुख स्यूं गायां म्हारा, भव - भव रा दुख जाय । l
स्वाम म्हारा भव - भव रा दुख जाय, जी मैं चरणां...
चौतीस अतिशय अति शोभता, वाणी गुण पैंतीस l
एक सहंस अठ लखण विराजै, जीत्या राग न रीष l l
काया ऊंची धनुष पांच सौ, सुतर में विस्तार |
स्फटिक सिंहासन आप विराज्या, थाप्या तीरथ च्यार l l
झिगमिंग ज्योत झीगमिंग दीपेे, कंचन वरणी काय ।
चौसठ इन्द्र करे थांरी सेवा सुर नर लागे पाय
हीवड़े में तो ढूंस घणी छेे, दर्शण करूं तिहां आय ।
आडा पर्वत बहती नदियां, आयो किणविध जाय
देव मित्र इसड़ो नाहि म्हारेे विमान में बैसाय ।
शक्ति नहीं मैं किणविथ आऊं, लब्धि न फोड़ी जाय
इह भव में तो आय नहि सकु, करूं नुं कोई उपाय |
सूतर मांही वचन आपरा, चालू निर्मल न्याय
शील रथे ऊपर बेसी नै, धर्म ध्वना फहराय ।
समकित ज्योति करी अगवाणी, करण जोग चित्त ल्याय ॥
ज्ञान कटारी कस कर बांधू, तप रूपी तलवार
राग द्वेष दोय पतला पाडूं, करदयूं खेतो पार
सूत्र वचन परमाण करी नै च्यार कषाय निवार ।
अरिहंत सिद्ध तणा गुण गाऊ, इम उतरुं भव पार ।
स्वाम म्हारा इम उतरूं भव पार, जी में चरणां
October 31,2022 / 1:58 PM
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