जिन शासन तेज बढ़ायो
लय : कैसी वह कोमल काया रे
रचयिता : साध्वीश्र राजीमतीजी
जिन-शासन तेज बढ़ाया रे, तीर्थंकर भगवान !
है कल्पवृक्ष की छाया रे, तीर्थंकर भगवान !
कितनों को पार लगाया रे, तीर्थंकर भगवान ।
1. अर्हत् है महिमा शाली, प्रवचन की छटा निराली ।
द्वादश गुण रूप कहाया रे, तीर्थंकर भगवान ।।
2. है सिद्ध मुक्त अविकारी, शुभ आठ गुणों के धारी ।
है चिन्मय चेतन काया रे, तीर्थंकर भगवान ।।
3. आचार्य संघ के प्रहरी, उनमें हो निष्ठा गहरी ।
छतीस गुणों को पाया रे, तीर्थंकर भगवान ।।
4. है उपाध्याय श्रुतधारी, जिनवाणी के अधिकारी ।
पच्चीस गुणों की माया रे, तीर्थंकर भगवान ।।
5. मुनिपद है सबसे सुन्दर, है छुपी शक्तियां अंदर ।
गुण सप्तवीस सुहाया रे, तीर्थंकर भगवान ।।
6. भिक्षु ने बाग लगाया, तुलसी ने उसे सजाया ।
अब महाश्रमण का साया रे, तीर्थंकर भगवान ।।
7. पावस का रंग लगा है, सबमें उत्साह जगा है ।
बढ़ने का मार्ग दिखाया रे, तीर्थंकर भगवान ।।
October 01,2022 / 7:42 PM
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