करो तपस्या करो तपस्या
लय - प्रभो तुम्हारे पावन पथ पर
रचयिता - मुनिश्री सागरमलजी 'श्रमण"
करो तपस्या करो तपस्या, जग जाये जीवन ज्योती,
तन - सुध करती, मन - सुथ करती, फिर अन्तर आत्मा को धोती ॥
पंखी पांख - झाइता जैसे कर्म तपस्या से झड़ते,
भव - भव के पातक झड़ते ज्यों, पतझड़ में पत्ते पड़ते,
कर्ज चुकता, हलका होता, आत्मा जिस बोझ को होती ॥
आगम, वेद, कुरान, पुराणों में तप महिमा गाई है,
सभी लब्धियां, सभी सिद्धियां तप से ही बतलाई है,
सोई हुई अनंत शक्तियां, तपस्या से ही जागृत होती ॥
जब तक आयंबिल - तप चलता रहा, द्वारिका नहीं जली,
दिया शराप दिपायन ऋषि ने, किन्तु एक भी नहीं चलीं,
अटल प्रभाव तपस्या का यह, कहे फिरोती, भले मनोती ॥
तप से अर्जुन माली जैसे, पापी का उदार हुआ,
दृढ़ - प्रहरी जैसे हत्यारे का, बेड़ा पार हुआ,
बंधे हुऐ चिकने कर्मों की करे कटोती, कहे भगोती ॥
तन से नहीं, तपस्या मन की मजबूती से होती है,
कायरता से नहीं, विजय तो, रजपूती से होती है,
तूं सौदागर, मन है 'सागर', तन है सीप, तपस्या मोती ॥
December 28,2022 / 11:12 PM
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