लो जैन जगत के तीर्थंकर !
लय : प्रभु पार्श्वदेव चरणों में
रचयिता : आचार्य श्री तुलसी
1. लो जैन जगत के तीर्थकर ! मेरा प्रणाम लो ।
दो वीतरागता का वर, वन्दन निष्काम लो ।।
2. तुम तीर्थ नहीं तीर्थंकर, क्या गुण गरिमा गाएं ।
भव-सिन्धु-भंवर में भटके, भक्तों को थाम लो ।।
3. तुम सकल चराचर द्रष्टा, अविकल विज्ञान हो ।
तुम अमित-शक्ति दृढ़ दर्शन, अविचल विश्राम लो ।।
4. तुम तीन भुवन के त्रायी, उत्तरदायी नहीं ।
सुख-दुख जब निज कर्माश्रित, तुम ज्योतिर्धाम लो ।।
5. तुम आत्म-विजेता नेता, 'तुलसी' के त्राण हो ।
तुम 'सत्यं शिवं सुन्दरं' स्तवना आठों याम लो ।।
October 01,2022 / 4:39 PM
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