म्हांनेै घणो सुहावेे जी
लय - माढ़
रचयिता - आचार्यश्री तुलसी
म्हांनेै घणो सुहावेे जी,
स्वामीजी रो शासण म्हांनेे घणो सुहावेे जी,
वीर प्रभुजी रो आसण, म्हांनेे घणो सुहावेे जी ।
घणो सुहावेे, हृदय लुभावेे, तारक तेरापंथ ॥
1. मर्यादामय जीवन सारो, मर्यादा रो मान ।
आत्म - नियंत्रण अरू अनुशासन, है शासन री शान ॥
2. एकाचार्य, एक समाचारी, एक प्ररूपणा - पंथ l
ओ नूतन अद्वैत निकाळ्यो वाह ! वाह भीखणजी संत ॥
3. पावस में प्रसरे करे अपणो शीत - काल संकोच ।
निर्झरणी ज्यूं शासण - सरणी,अन्तर - मन आलोच ll
4. सेवाभावी सुविनीतां रो बढ़े सहज बहुमान l
खेतसी तथा रायचन्द ओ, ल्यो प्रत्यक्ष प्रमाण ll
5. निन्नाणू रूपिये नोळी में,आयो विनय आचार ।
शेष एक बाकी, बाकी गुण स्वर्ण सुरभि - संचार ॥
6. जो दळबन्दी रेे दळ - दळ स्यूं दूर रहे दस हाथ l
संघ - हितेच्छू तिन री तुलना 'रखिया - रोहिणी'साथ ॥
7. विद्या भारभूत बण ज्यावेे, कला कलंकित होय ।
नहि धारी गणि-गण इकतारी, वारी खूब विलोय ll
8. बा वक्तृत्व कला बेचारी, बिन वारी घन गाज l
नहिं विकसावे गण - वन - क्यारी, मूल बिना नहीं ब्याज ॥
9. बात - बात प्रवचन - प्रवचन में, गण गणपति रो नाम ।
सुविनीतां री सरल कसोटी, दो चावल कर थाम ॥
9. लिखित लेख ओ स्वामीजी रो, शासण री बुनियाद ।
हर वर्षे मर्याद-महोत्सव, 'तुलसी' तिणरी याद ll
10. सतरेे पंचशया मुनि श्रमणी, श्रावक - संघ सजोर ।
पुर सरदार त्रयोदश संवत, शासन हर्ष - विभोर ll
December 07,2022 / 1:32 PM
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