म्हारो अभिवादन स्वीकारो
लय : नाथ ! कैसे कर्म को फंद छुड़ायो
रचयिता : आचार्य श्री तुलसी
म्हारो अभिवादन स्वीकारो,
उपाध्यायजी ! द्यो जीकारो, म्हारो अभिवादन स्वीकारो ।
स्वीकारो अस्वीकारो, अभिवादन व्यर्थ न म्हारो ।।
1. परमेष्ठी-पंचक में प्रभुवरा ! चोथो पद है थांरो ।
नमो उवज्झायाणं रो जप, लागै प्यारो-प्यारो ।।
2. जिन-शासन रो बड़ो महकमो, साहिब ! आप संभारो ।
घट-घट घाली ज्ञान-रोशनी, हर अज्ञान-अंधारो ।।
3. आगम एक अखूट खजानो, जो अध्यात्म कथा रो ।
सदा भणावो शिष्य संघ नै, बांधी मधुर मथारो ।।
4. श्रुत-उपासना संघ-शासना रो सम्बन्ध सदा रो ।
उपाध्याय आचारज जोड़ी, अविचल ज्यूं ध्रुव-तारो ।।
5. पांचू अंग नमत प्रभु-चरणां, निश्चित ही निस्तारो ।
तिण में 'तुलसी' बणै सहारो, थारों एक इशारो ।।
October 01,2022 / 2:35 PM
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