परमेष्ठी पंचक ध्याऊं
लय : पांचूं परमेष्ठी प्यारा
रचयिता : आचार्य श्री तुलसी
परमेष्ठी पंचक ध्याऊं,
मैं सुमर सुमर सुख पाऊं, परमेष्ठी पंचक ध्याऊं ।
निज जीवन सफल बनाऊं, परमेष्ठी पंचक ध्याऊं ।।
1. अरहन्त सिद्ध अविनाशी, धर्माचार्य गुण-राशी ।
है उपाध्याय अभ्यासी, मुनि-चरण शरण में आऊं ।।
2. सहु मुक्ति-महल रा वासी, पधराया वा पथरासी ।
ज्योती में ज्योती मिलासी, अस्तित्व अलग-लग गाऊं ।।
3. निस्वारथ पर-उपकारी, जग जीवन रा हितकारी |
हो बार-बार बलिहारी, मैं छिन-छिन ध्यान लगाऊं ।।
4. ज्यांरी वाणी कल्याणी, सद्धर्म मर्म दरसाणी ।
घट-घट समता सरसाणी, सुण हृदय कमल विकसाऊं ।।
5. जिनमत में मंत्र अनादि, है नमोक्कार अविवादि ।
सुमरण स्यूं हुवै समाधि, 'तुलसी' नित शीष झुकाऊं ।।
October 01,2022 / 12:07 AM
428 / 0
744 / 0
1140 / 0
284 / 0
550 / 0
203 / 0
269 / 0
470 / 0
6027 / 0
885 / 0
689 / 0
300 / 0
231 / 0
186 / 0
185 / 0
214 / 0
185 / 0
245 / 0
249 / 0
213 / 0
313 / 0
246 / 0
207 / 0
236 / 0
213 / 0
674 / 0
1672 / 0
264 / 0
1878 / 0
295 / 0
308 / 0
332 / 0
1007 / 0
997 / 0
375 / 0
1181 / 0
303 / 0
410 / 0
597 / 0
344 / 0
318 / 0
2160 / 0
458 / 0
873 / 0
7379 / 0
3168 / 0
776 / 0
1223 / 0
489 / 0
426 / 0
369 / 0
414 / 0
370 / 0
574 / 0
417 / 0
559 / 0
868 / 0
428 / 0
744 / 0
1140 / 0
284 / 0
550 / 0
203 / 0
269 / 0
470 / 0
6027 / 0
885 / 0
689 / 0
300 / 0
231 / 0
186 / 0
185 / 0
214 / 0
185 / 0
245 / 0
249 / 0
213 / 0
313 / 0
246 / 0
207 / 0
236 / 0
213 / 0
674 / 0
1672 / 0
264 / 0
1878 / 0
295 / 0
308 / 0
332 / 0
1007 / 0
997 / 0
375 / 0
1181 / 0
303 / 0
410 / 0
597 / 0
344 / 0
318 / 0
2160 / 0
458 / 0
873 / 0
7379 / 0
3168 / 0
776 / 0
1223 / 0
489 / 0
426 / 0
369 / 0
414 / 0
370 / 0
574 / 0
417 / 0
559 / 0
868 / 0