प्रातः उठकर शुद्ध भाव से
लय : प्रभाती
रचयित्री : साध्वी श्री राजीमतीजी
1. प्रातः उठकर शुद्ध भाव से, परमेष्ठी का ध्यान धरूं ।
देव, गुरू, जिन-धर्म शरण से, भव-सागर को पार करूं ।।
2. वन्दूं मैं प्रतिदिन अर्हम् को, श्री सिद्धं आचार्यवरम् ।
उपाध्याय सद्-ज्ञान प्रदाता, मुनिवर महाउपकारकरम् ।।
3. ॐ अरिहन्त देव अघ-हरणम्, सिद्धनिरंजन सुख-करणम् l
श्री आचार्य भवोदधि-तरणम्, उपाध्याय मुनिवर शरणम् ।।
4. मस्तक पर अरिहंत विराजित, भृकुटि भग में सिद्ध रहे ।
हृदय कमल में गुरू, नाभि में उपाध्याय, मुनि चरण बहे ।।
5. संकट कष्ट कटे भव संचित, महामंत्र के दृढ़ बल से ।
भूत-प्रेत बाधायें टलती, अभिमंत्रित नव पद जल से ।।
6. ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं विघ्न-विनाशक, महामंत्र जग का त्राता ।
सच्चे दिल से जपने वाला, सुख शान्ति वैभव पाता ।।
October 02,2022 / 12:01 PM
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