प्रभू ! म्हारै मन-मंदिर में पधारो
लय : आसावरी
रचयिता : आचार्य श्री तुलसी
प्रभू ! म्हारे मन-मंदिर में पधारो,
म्हारो स्वागत नाथ ! सिकारो,
करूं पूजन प्राण-पिया रो,
प्रभू ! म्हारै मन-मंदिर में पधारो ।।
1. चिन्मय नै पाषाण बणाऊं, ओ परिचय जड़ता रो ।
स्वयं अमल अविकार प्रभू तो, स्नान कराऊं क्यांरो ?
2. फल फूलां री भेंट करूं के ? जीवन अर्पण म्हारो ।
अगर तगर, चन्दन के चरचूं ? कण-कण सुरभित थांरो ।।
3. नहीं ताल कंसाल बजाऊं, धूप न दीप उजारो ।
केवल लयमय स्तचना गाऊं, ध्याऊं ध्यान गुणां रो ।।
4. मन चंचल है और मलिन है, ओ है धीठ धुतारो ।
सब कुछ है तब ही तो तेडूं, सकरुण दृष्टि निहारो ।।
5. वीतराग हो, समदर्शी हो, समता - रस संचारो ।
'तुलसी' तारण - तरण तीर्थपति, अपणो विरूद विचारो ।।
October 01,2022 / 11:52 AM
429 / 0
745 / 0
1140 / 0
284 / 0
550 / 0
203 / 0
270 / 0
470 / 0
6028 / 0
886 / 0
690 / 0
300 / 0
232 / 0
186 / 0
186 / 0
214 / 0
185 / 0
245 / 0
249 / 0
214 / 0
313 / 0
247 / 0
207 / 0
237 / 0
214 / 0
674 / 0
1673 / 0
264 / 0
1879 / 0
295 / 0
309 / 0
332 / 0
1007 / 0
998 / 0
375 / 0
1182 / 0
303 / 0
410 / 0
597 / 0
344 / 0
319 / 0
2161 / 0
459 / 0
874 / 0
7379 / 0
3170 / 0
777 / 0
1224 / 0
490 / 0
427 / 0
370 / 0
415 / 0
370 / 0
575 / 0
417 / 0
559 / 0
868 / 0
429 / 0
745 / 0
1140 / 0
284 / 0
550 / 0
203 / 0
270 / 0
470 / 0
6028 / 0
886 / 0
690 / 0
300 / 0
232 / 0
186 / 0
186 / 0
214 / 0
185 / 0
245 / 0
249 / 0
214 / 0
313 / 0
247 / 0
207 / 0
237 / 0
214 / 0
674 / 0
1673 / 0
264 / 0
1879 / 0
295 / 0
309 / 0
332 / 0
1007 / 0
998 / 0
375 / 0
1182 / 0
303 / 0
410 / 0
597 / 0
344 / 0
319 / 0
2161 / 0
459 / 0
874 / 0
7379 / 0
3170 / 0
777 / 0
1224 / 0
490 / 0
427 / 0
370 / 0
415 / 0
370 / 0
575 / 0
417 / 0
559 / 0
868 / 0