प्रहसम परम पुरुष नै समरुं
लय : सुगुणा ! पाप पंक परिहरिये
रचयिता : आचार्य श्री तुलसी
प्रहसम परम पुरुष नै समरूं,
परम पुरुष नै सुध मन समर्यां, आतम निरमल होय ।
निज में निज-गुण परगट जोय ।।
1. ऋषभ, अजित, सम्भव, अभिनन्दन, सुमति, पदमप्रम नाम ।
सप्तम स्वाम सुपास, चन्द्रप्रभु, सुविधि, शीतल अभिराम ।।
2. श्रेयांस, वासुपूज्य जिन वन्दुं, विमल अनन्त विशेष ।
धर्म, शान्ति, कुन्थू, अर, मल्ली, मुनिसुव्रत तीर्थेश ।।
3. नमि जिन, नेमिनाथ पारसप्रभु, चौबीसमां महावीर ।
भाव निक्षेपे भजन करंतां, पावै भवदधि तीर ।।
4. सिद्ध अनन्त अष्ट गुण-नायक, अजरामर कहिवाय ।
तीन प्रदक्षिणा देई प्रणमूं, थिर कर मन-वच-काय ।।
5. गौतम आदि इग्यारह गणधर, धर्माचारज ध्येय ।
पंचवीस गुण युक्त विराजै, उपाध्याय आदेय ।।
6. अढ़ी द्वीप पनरा खेत्रां में, पंच महाव्रत धार ।
समिति-गुप्ति-युत जो सुध साधू, वन्दुं बारम्बार ।।
7. दुःषम आरे भरत मझारे, प्रगट्या भिक्षु स्वाम ।
अर्हन्त-देव ज्यूं धर्म दिपायो, पायो जग में नाम ।।
8. पटधर भारमल्ल ऋषिराय जयजश मघ महाराज ।
माणकलाल डालगणि कालू अष्टम पट अधिराज ।।
9. भाग्य योग भिक्षु-गण पायो, तेरापंथ प्रख्यात ।
परम प्रमोद मनावै गणपति 'तुलसी' वदना-जात ।।
October 01,2022 / 3:13 PM
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