प्रयाण-गीत
लय : वृन्दावन का कृष्ण कन्हैया
रचियता : आचार्य श्री तुलसी
प्रभो ! तुम्हारे पावन पथ पर जीवन अर्पण है सारा ।
बढ़े चलें, हम रुकें न क्षण भी, हो यह दृढ़ संकल्प हमारा ।।
1. प्राणों की परवाह नहीं है, प्रण को अटल निभाएंगे,
नहीं अपेक्षा है औरों की स्वयं लक्ष्य को पाएंगे ।
एक तुम्हारे ही वचनों का, भगवन ! प्रतिपल सबल सहारा ।।
2. ज्यों-ज्यों चरण बढ़ेंगे आगे, स्वतः मार्ग बन जाएगा,
हटना होगा उसे बिच में, जो बाधक बन आएगा ।
रुक न सकेगी, मुड़ न सकेगी, सत्य क्रान्ति की उज्जवल धारा ।।
3. आत्मशुद्धि का जहां प्रश्न है, सम्प्रदाय का मोह न हो,
चाह न यश की और किसी से, भी कोई विद्रोह न हो ।
स्वर्ण विघर्षण से ज्यों सत्य, निखरता संघर्षो के द्वारा ।।
4. आग्रह-हीन गहन चिन्तन का, द्वार हमेशा खुला रहे,
कण-कण में आदर्श तुम्हारा, पय-मिश्री ज्यों घुला रहे ।
जागे स्वयं जगाएं जग को, हो यह सफल हमारा नारा ।।
5. नया मोड़ हो उसी दिशा में, नयी चेतना फिर जागे,
तोड़ गिराएं जीर्ण-शीर्ण, जो अन्धरुढ़ियों के धागे ।
आगे बढ़ने का यह युग है, बढ़ना हमको सबसे प्यारा ।।
6. शुद्धाचार विचार-भित्ति पर, हम अभिनव निर्माण करें,
सिद्धांतों को अटल निभाते, निज पर का कल्याण करें ।
इसी भावना से भिक्षु का, 'तुलसी' चमका भाग्य सितारा ।।
October 01,2022 / 4:56 PM
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