राखज्यो शासण से विश्वास
लय - जगाया तुमको कितनी बार
रचयिता - मुनिश्री चम्पालालजी
राखज्यो शासण से विश्वास राखज्यो शासण से विश्वास,
शासण रो विश्वास राखज्यो, जब लग में श्वास |
जिण घट मे शंका - कांखा, नहि समकित करे निवास ॥
अत्राणां से त्राण है शासण, अप्राणां से प्राण है शासण,
संयम जीवन शान शासण,
मिट्टी, पाणी, हवा ज्यू निर्मल, है शासण आकाश ||
अशरण - शरण, असहाय - सहायक, निर्धन - धन, जीवन - अधिनायक,
उपमा अनुपमेय रे लायक,
अतुलनीय नेे वालण से मै,
क्यूं कर करू प्रयास ॥
नई - पुराणी रेे झगड़े में, परिचय पक्षपात रगड़े में,
मति फंस जाज्यो थे फगड़ेे में,
बगत बीत ज्यासी रहज्यासी, जुग जुग तक इतिहास ॥
उड़ती सुण हताश मत होइज्यो, निन्दा सुण उदास मत होइज्यो,
छापा पढ़ निराश मत होइज्यो,
जे करसी सो भरसी थे मत, करज्यो निज - गुण वास ॥
प्राण चढ़ाज्यो भैक्षव - गण में, दृढ़ श्रद्धा तुलसी चरणन में,
विजय वरीज्यो समरांगण में,
"चम्पक गड्या रहीज्यो गण में दिन - दिन चढ़तोल्लास ॥
December 09,2022 / 5:23 PM
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