शासन है नंदनवन
लय - बच्चे मन के सच्चे
रचयिता - आचार्यश्री तुलसी
शासन है नंदनवन, हंसता - खिलता - सा उपवन ।
इसकी शीतल छाया में पुलकित जीवन का कण - कण ॥
श्रद्धा का सुंदर पथ है, अविनथ इसका इति अथ है,
लक्ष्योन्मुख बढ़ते जाएं, अश्लथ प्राणों का रथ है ।
ज्ञान - दीप कर में लेकर तम - सागर के पार उतर,
गहरे पानी पैठ जगाएं, अब अपना अन्तर्मन ||
संघ परम उपकारी है, सब इसके आभारी है,
जयकारी जीवन-रण में इसकी महिमा भारी है।
सफल सारणा करता है, आधि - व्याधि संहर्ता है,
विपुल - निर्जय का साधन बनता है यह निर्मल गण ॥
'अस्सिं लोए उववाए', आयति में शुभ फल लाए,
मर्यादा का कवच पहन, साधक सदा विजय पाए l
तूफानी लहरों को चीर, बढ़ता है मर्यादित वीर,
आलंबन है संघ - संपदा का मर्यादा क्षण - क्षण ॥
मर्यादा है जीवन प्राण, मर्यादाओं पर अभिमान,
मर्यादा - बलि - वेदी पर, अर्पित हो सारे अरमान । ।
शासन हित अपना हित हो, हम से शासन उपचित हो,
हाड, मांस, मज्जा नस - नस में, हो इसका अपनापन ॥
बालू के टीले नत है, मोमासर यह प्रमुदित है,
रूप विशद मर्यादोत्सव, जनता सारी चित्रित हैं।
बूंद - बूंद का क्या अस्तित्व ? संघ - समंदर है व्यक्तित्व,
'तुलसी' आत्मतोष देता है, हार्दिक सहज समर्पण ॥
December 09,2022 / 5:12 PM
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