शासन कल्पतरू उतर्यो
लय - उतस्या ज्योति चरण
रचयिता - आचार्यश्री तुलसी
शासन कल्पतरू उतर्यो मोहरां रो चरू,
राखो राखो रखवाली ।
बाबै भिक्खू रो उपगार, मानां जीवन भर आभार,
ज्यांरी सांवरी सूरत तेरापंथ से आधार ॥
अलबेलो शासण आपां रो, सारां रै मनभावणो,
मनहारो प्राणां स्यू प्यारो लागे घणो सुखवणो ।
इणरी ऊजली आभा स्यं लेवां जीवन उजार ॥
माता - पिता सो आसरो, ओ नन्दनवन - सो वास है,
आश्वासन है दुबलां से, सवळा से विश्वास है।
अनुपम शीतधस्सो हे बप्यो सब ऋतुवां में सुखकार ॥
गण आपां से आपा गण रा, ओ आछो अनुबन्ध है,
धागेे में पिरोयी माळा, सारिसो संबंध है।
युवकां बालको भायां बायां में जागे ए संस्कार ॥
एक है आचार, एक आचारज री आण है,
एक ही विचार एक कायदो रू काण है।
अपने एकता ही एकता से सारो कारोबार ||
आण - काण लोप करेें,शान अपनी सांवळी,
साथ और श्रावकां में, बात करै बावळी ।
उणने 'रीड़ी वाला सेठिया से जाब जोरदार ॥
संघ री शालीनता में लीनता है राखणी,
बारीकी स्यूं झांक आंख, पूरी - पूरी राखणी ।
'मेहता बाववाला ऊमजी से आंकल्यो आचार ॥
आसथा पर आंच, श्रद्धाशील किंया आण दै,
ऐर - गैर बात ऊपर ध्यान कियां जाण दै l
इण में 'पटवाजी' से पोज आवै सामने साकार I
'आचळियेे री आस्था रू पन्नै' री मरदानगी,
'गोठीजी' से ज्ञान 'भंवरो' वीरता री बानगी ।
'हनुमंत' री इकतारी, दफ्तरी सो थार - फार ॥
भगती 'दुगड़ दूलजी' री, 'वादरिये' री बादरी,
'विरथोजी जीरावाला' री, वेस बड़ी पाथरी ।
'चन्दूबाई' री चतुराई आवे याद बारम्बार ||
आपणो है काम एक केन्द्र नै आराथणो,
एक तान एक ध्यान, राधा-वेध साधणो ।
शेष सारी बाता गौण, चाहे लाख हो हजार ||
उतरती आलोचना सुणवानें बहरा कान हो,
उतरती पड़ती करवाने बन्द ही जवान हो ।
आपां खैरखवा रहवां, आतूं पहर खबरदार ||
अपछंदा अवनीत श्रावका - श्राविका या साथ हो,
'जय जिनेन्द्र' दूर स्यू, आ आपणी मरयाद हो ।
तोड़ देणी है तुरंन्त जिल्हा बंदी री कतार ||१२||
आ है 'कामधेनु' गाय, देख्यां लागे सोहणी,
ओ है रत्ना से भंडार, वणणो रखिया रोहिणी,
ओ है आम्र - कुंज 'तुलसी छाया शीतल सुप्यार |
आ है द्राक्षा - कुंज, 'तुलसी' छाया शीतल सुप्यार ॥
December 09,2022 / 4:57 PM
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