स्वामी ! आया - आया गढ़ गिगनारां आपरेे ।
लय - म्हारो केसरियो हजारी
रचयिता - मुनिश्री सुरेश
स्वामी ! आया - आया गढ़ गिगनारां आपरेे ।
स्वामी ! मुलकै - मुलके जोधाणा री हाट, समकित से कख्या चांनणो ।
स्वामी ! धोरां री धरती पर उभ्यो चांद, समकित से कख्या चांनणो ||
स्वामी ! मर्यादा री गहरी नींवा गाड़ग्या ।
स्वामी ! तेरापंथ बण्यों है, गण गुलजार ॥
स्वामी ! बत्तीसे रो, बो विद्याप मन भावतो ।
बांधी हिन्दमहासागर पर अदभुतपाल ॥
स्वामी ! पत्र बण्यो है, छत्र संघ सिर सेहरो ।
स्वामी ! तेरापंथ शासण रो, ओ आधार ॥
स्वामी ! तेरह मांस्यूं, सात गया, छव ही रह्या l
लिखदी स्वर्णाक्षर में, कलमां जो कल्लदार ॥
स्वामी ! पहलो तो चोमासो, करियो केलवे ।
बणग्यो अंधेरी - ओरी से, बो इतिहास ॥
स्वामी ! अठारे साठे से, पावस दीपतो ।
स्वामी ! कच्ची - पक्की, डाटा से इतिहास ॥
स्वामी ! हाट पधाऱ्या, अणसण आदर्यो ।
स्वामी ! दर्शन री लागी, भक्तां री भीड़
गावेे 'मुनि सुरेश' मर्यादा मोछव रंग जम्यो ।
स्वामी ! जोधाणे में चार तीरथ रा ठाट ॥
December 09,2022 / 5:10 PM
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