तप रेे झूले में
लय - तुलसी चरणों में
रचयित्री - साध्वीश्री कनकधीजी
तप रेे झूले में, झूल्यां आनंद आवेे है,
आनन्द आवे है,कि झूल्यां आनंद आवे है ।
आनंद आवे है, कि मन म्हांसे मोद मनाते है |
ऋषभ, अजित, संभव, अभिनंदन, सुमति, पद्म सुखकारी रे,
श्री सुपार्रव, चंदाप्रभु, सुविधि, शीतलप्रभु भयहारी रे ।
श्री श्रेयांस वासुपूज्य जिन, जन - जन ध्यावे है
विमल, अनंत, धर्म जिनवर श्री शांति, कुंथु उपकारी रे,
अर्हत अर, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि जिन महिमा न्यारी रे ।
नेमी, पारस, वीर चरण में, शीप झुकावे है
आर्य भिक्षु, श्रीभारमल्ल, ऋषिराय, जीत जयकारी रे,
मघवा, माणक, डालगणी, कालू विभुता धारी रे ।
तुलसी, महाप्रज्ञ जिनशासन, जबर दिपावे है
अमृत, कोदर, भीम, रामसुख, शिवमुनि महा तपस्वी रे,
महासती अणचां, पन्ना से, जीवन बड़ो यशश्वी रे ।
आंरो सुमिरण भी कण-कण में, जोश जगावेे है
तपो - योग स्यू साधक देखो, संयम समता साथै रे,
कष्ट सहन में प्रबल मनोबल, मोक्ष मार्ग आराधे रे ।
भजन मंडली गीत सुणाकर, भाव बढ़ाते है ॥
December 30,2022 / 11:25 PM
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