तप स्यूं आत्मा
लय - स्वामी भीखणजी से नाम
रचयिता - मुनिश्री मधुकरजी
तप स्यूं आत्मा में भारी बळ आवेे ।
कचरो करमा से पल भर में जल ज्यावे ॥
कंचन वरणी होवेे काया,
रोग - शोक खने आता ही घबरावै ॥
कोरी बाता करणी सोरी, मन री तृष्णा तजणी दोरी ।
उर में ऊंदरा कूदे जद धीरज ढह ज्यावेे ||
इन्द्रयां चंचल नाच नचावै, बड़ा - बड़ा से रोव गमावै ।
बिरला हिम्मती मिनरत ही संभळ पावे ॥
मुश्किल है वश करणो मन नै चाहिजे दिन भर है तन नै ।
भाणो देखता ही लार टपक ज्यावे ॥
प्रगट हुवेे केई लब्धयां मोटी, पिण पैली हुवै कड़ी कसोेटी ।
खरो उतरे वो सोनो कहलावे ॥
मोक्ष महल से चोथो पथ है, भव - वन पार उतारण रथ है।
'मधुकर तपस्या र आगम भी गुण गावेे ॥
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