तपस्या री महिमा भारी
लय - प्रज्ञा के दीप जलेगें
तपस्या री महिमा भारी, तपस्या है मंगलकारी,
तपस्या जीवन से सिणगार है ।
हो भाया ! तपस्या स्यूं होवे नैया पार है ।
तप है गंगा तप है जमना, तप ही तीरथ धाम जी,
तप रा जठे नगास बाजेे, सरे अचिंत्या काम जी,
आत्मिक शान्ति से पथ है, शिवपुर जावण से रथ है ।
चढ़ज्यावै बो हो जावे पार है ॥
तन मन रा रोग मिटावेे उजळे आत्मा राम जी,
तप रे मारग जो भी चाले, देव करे गुणग्राम जी,
टूटे तप स्यूं अघबंधन, आत्मा बण जावे कुंदन ।
खुल जावे शिवनगरी रा द्वार है ॥
डदर भर्योड़ो होते जद तो, तप में पूरो मन लागे,
के उपवास के आठ के पूरा, मासखमण पचखुं साठगे,
पर जब आ भूख सतावे, सारा ही सेव गमावे ।
छा जावे आंख्या में अंधार ||
पर जो शूरवीर होवें वो इण रे सामी मंड जावे,
शुरखीर रे घर 'प्रमोद' आ, भजन मंडली गुण गावे,
हिम्मत की कीमत भारी हिम्मत री महिमा न्यारी ।
तप स्यूं ओ चमन हुयो गुलजार है ॥
December 28,2022 / 11:05 PM
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