तीर्थंकर चौबीस
लय : चांद चढ्यो गिगनार
रचयिता : साध्वी श्री राजीमतीजी
1. तीर्थकंर चौबीस नित उठ ध्यान धरूं जी, ध्यान धरूं ।
मंगलमय जगदीश, महिमा गान करूं जी, गान करूं ।।
2. रिषभ, अजित भगवान संभव सुखकारी जी, सुखकारी ।
अभिनंदन जग त्राण, सुमति जयकारी जी, जयकारी ।।
3. पद्म सुपारसनाथ, चंदन चंद्र प्रभु जी, चंद्र प्रभु ।
सुविधि, शीतल, श्रेयांस, वंदन वासुप्रभु जी, वासु प्रभु ।।
4. विमल अनंत विशेष, जिनवर धर्मप्रभु जी, धर्म प्रभु ।
शांति-शांति अखिलेश ! पावन कुंथुप्रभु जी, कुंथु प्रभु ।।
5. अर मल्लि तीर्थेश ! मन का भार हरो जी, भार हरो ।
सुव्रतनाथ जिनेश ! भव जल पार करो जी, पार करो ।।
6. नमि, नेमि गुणधाम, कर दो अविकारी जी, अविकारी ।
पार्श्वनाथ का नाम, कितना गुणकारी जी, गुणकारी ।।
7. त्रिशला-नंदन वीर, मेरी पीर हरो जी, पीर हरो ।
दिखलाओ भव तीर, चिन्मय रूप करो जी, रूप करो ।।
8. क्रोध मान का त्याग, सच्चा धर्म यही जी, धर्म यही ।
पर भावों में राग, बंधन मार्ग सही जी, मार्ग सही ।।
October 02,2022 / 11:37 AM
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